Saturday 21 December 2019

rajasthan state stroke, राजस्थान के प्रमुख आंदोलन

राजस्थान के प्रमुख आंदोलन

♣♣ राजस्थान के किसान आंदोलन ♣♣

1. बजौलिया किसान आंदोलन (1897 -1941) ===> बिजौलिया ठिकाने का संस्थापक अषोक परमार था।खानवा के युद्ध में सांगा की सहायता करने के कारण, सांगा ने यह ठिकाना अषोक परमार को दिया था।बिजौलिया का क्षेत्र उपरमाल के नाम से जाना जाता हैं। इस ठिकाने में धाकड़ किसान कृषि कार्य करते थे।यह आंदोलन लागबाग (83 प्रकार की थी), बेगार, लाटा, कुंता व चंवरी कर, तलवार बंधाई कर (भू-राजस्व निर्धारणकी पद्धतियां) के विरोध के पिरणामस्वरूप हुई थी।बिजौलिया किसान आंदोलन की शुरूआत साधुसीतारामदास, नानकजी पटेल व ठाकरी पटेल के नेतृत्व में हुई थी।जिसकी बागड़ोर 1916 में विजयसिंह पथिक ने सम्भाली।1917 ई. में विजयसिंह पथिक ने ऊपरमाल पंचबोर्ड़ की स्थापना की।1927 में विजयसिंह पथिक इस आंदोलन से अलग हो गए।विजयसिंह पथिक के बाद माणिक्यलाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय तथा जमनालाल बजाज ने इस आंदोलन की बागड़ोर संभाली ।माणिक्यलाल वर्मां व मेवाड़ रियासत के प्रधानमंत्री टी.राघवाचार्य के बीच समझौता हुआ और किसानों की अधिकांश माँग मान ली गयी।विजयसिंह पथिक को किसान आंदोलन का जनक कहा जाता हैं।

2. बेंगु किसान आंदोलन (चित्तौड़गढ़) (1921) ===> इसकी शुरूआत लाग बाग, बेगार प्रथा के विरोध के पिरणामस्वरूप कारण सन् 1921 ई. हुई थी।आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चैधरी ने की बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी। इस समय बेंगु के ठाकुर अनुपसिंह थे।1923 में अनुपसिंह और राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारयण चैधरी के मध्य एक समझौता हुआ जिसे वोल्सेविक समझौते की संज्ञा दी गई। यह संज्ञा किसान आंदोलन के प्रस्तावों के लिए गठित ट्रेन्च आयोग ने दी थी।13 जुलाई,1923 को गोविन्दपुरा गांव में किसानों का एक सम्मेलन हुआ, सेना के द्वारा किसानों पर गोलिया चलाई गयी। जिसमें रूपाजी और कृपाजी नामक दो किसान शहीद हुए। अन्त में बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया। यह आन्दोलन विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में समाप्त हुआ था।

3. अलवर किसान आंदोलन ===> अलवर में दो आंदोलन हुए थे :---

i) सुअरपालन विरोधी आंदोलन (1921) ===> अलवर में बाड़ों में सुअर पालन किया जाता था, जब कभी इन सुअर को खुला छोड़ा जाता था, तब ये फसल नष्ट कर देते थे। जिसका किसानों ने विरोध किया, जबकि सरकार ने सुअरों को मारने पर पाबंदी लगा रखी थी। लेकिन अंत में सरकार के द्वारा सुअरों को मारने की अनुमति दे दी एवं आंदोलन शांत हो गया।

ii) नीमूचणा किसान आंदोलन (1923-24) ===> अलवर के महाराजा जयसिंह द्वारा लगान की दर बढ़ाने पर 14 मई, 1925 को नीमूचणा गांव में 800 किसानों ने एक सभा आयोजित कीजिस पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें सैकड़ों किसान मारे गए।गांधीजी ने इस आंदोलन को जलियांवालाबाग कांड से भी वीभत्स की संज्ञा दी और इसे दोहरे डायरिजम की संज्ञा दी।

4. बूंदी किसान आंदोलन (1926) ===> इस आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं। आंदोलन का मुख्य कारण अत्यधिक लगान, लाग बाग और बेगार थी।आंदोलन की शुरूआत नैनूराम शर्मा ने की। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया, पुलिस ने किसानों पर गोलिया चलाई, जिसमें झण्डा गीत गाते हुए नानकजी भील शहीद हो गए।कुछ समय बाद माणिकलाल वर्मा ने इसका नेतृत्व किया। यह आंदोलन 17 वर्षं तक चला एवं 1943 में समाप्त हो गया।

5. दूधवा-खारा किसान आंदोलन (1946-47) ===> बीकानेर रियासत के चुरू में हुआ। आंदोलन का कारण जमींदारों का अत्याचार था। इस समय बीकानेर के शासक शार्दुलसिंजी (गंगासिंहजी के पुत्र) थे। इस आंदोलन का नेतृत्व रघुवरदयाल गोयल, वैद्य मघाराम, हनुमानसिंह आर्य के द्वारा किया गया।

6. मातृकुण्डिया किसान आंदोलन (चित्तौड़गढ़) ===> 22 जून, 1880 में हुआ। यह एक जाट किसान आंदोलन था। इसका मुख्य कारण नई भू-राजस्व व्यवस्था थी। इस समय मेवाड़ के शासक महाराणा फतेहसिंह थे।

7. मेव किसान आंदोलन (1931) ===> यह अलवर व भरतपुर (मेवात) में हुआ। अलवर, भरतपुर के मेव बाहुल्य क्षेत्र को मेवात कहते हैं। यह लगान विरोधी आंदोलन था। आंदोलन का नेतृत्व मोहम्मद अली के द्वारा किया गया।

8. किषोरीदेवी (25 अप्रैल, 1934) ===> सीकर के कटराथल नामक स्थान पर सरदार हरलालसिंह की पत्नि किषोरदेवी के नेतृत्व में जाट महिलाओं का एक सम्मेलन बुलाया गया। जिसमें लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया।श्रीमती रमादेवी, श्रीमती दुर्गादेवी, श्रीमती उत्तमादेवी ने इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। किषोरीदेवी के प्रयासों से शेखवाटी क्षेत्र में राजनैतिक चेतना जागृत हुई।

9. जयसिंहपुरा किसान हत्याकाण्ड (1934) ===> यह 21 जून, 1934 को डूंडलोद के ठाकुर के भाई ने खेत जोत रहे किसानों पर गोलिया चलाई, जिसमें अनेक किसान शहीद हुए। ठाकुर के भाई ईश्वरसिंह पर मुकदमा चलाया गया।

10. शेखावटी किसान आंदोलन (1925) ===> यह आंदोलन पलथाना, कटराथल, गोधरा, कुन्दनगांव आदि गांवों में फैला हुआ था।खुड़ी गांव और कुन्दन गांव में पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही में अनेक किसान मारे गये।शेखावटी किसान आंदोलन में जयपुर प्रजामण्डल का योगदान था।1946 में हीरालाल शास्त्री के माध्यम से आंदोलन समाप्त हुआ।

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♣♣ राजस्थान के जनजातीय आंदोलन ♣♣

1. भगत आंदोलन/गोविन्दगिरी आंदोलन (1883) ===> भील, आदिवासी संन्यासियों को भगत कहा जाता था।यह आंदोलन आदिवासी भील बाहुल्य डुंगरपुर और बांसवाड़ा में हुआ था।गोविन्दगिरी के द्वारा भीलों में व्याप्त बुराईयों, कुप्रथाओं को दूर करने के लिए एवं भीलों में राजनैतिक चेतना जागृत करने के लिए 1883 में संप (भाईचारा या सम्पत) सभा की स्थापना की एवं धूणी की स्थापना की जहां गोविन्दगिरी ने भीलों को उपदेष दियें।गोविन्दगिरी दयानन्द सरस्वती की विचारधारा से प्रेरित थे। इन्होने बांसवाड़ा की मानगढ़ की पहाड़ी को अपनी कर्मभूमि बनाया।7 दिसम्बर, 1908 को हजारों की संख्या में भील इस पहाड़ी पर इकटठे हुए। पुलिस के द्वारा इन पर गोलियां चलाई गई, जिसमें लगभग 1500 भील मारे गए।प्रतिवर्ष इस स्थान पर अष्विन शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता हैं।ब्रिटिश सरकार और रियासत के द्वारा इस आंदोलन को दबा दिया गया।

2. एकी आंदोलन/भोमट भील आंदोलन (1921-23) ===> इस आंदोलन का सुत्रपात मोतीलाल तेजावत ने किया था। इन्हे आदिवासियों का मसीहा कहा जाता हैं।मोतीलाल तेजावत का जन्म उदयपुर के कोलियार गांव में एक ओसवाल परिवार में हुआ था। इस आंदोलन का प्रमुख कारण भीलों में व्याप्त असंतोष था। असंतोष के कारण निम्न थें===>

i) भीलों में व्याप्त सामाजिक बुराईयां व उनकी प्रथाओं पर ब्रिटिश सरकार ने रोक लगा दी थी।

ii) तम्बाकू, अफीम और नमक पर कर लगाए गए। यदि भील कर नहीं चुकाता तो उसे खेती नहीं करने दी जाती थी।

iii) भीलों से लाभ और बेगार लेने के लिए क्रुरतापूर्वक व्यवहार किया जाता था।

► मोतीलाल तेजावत ने सभी भीलों को एकत्रित कर इस आंदोलन का श्रीगणेष 1921 में झाड़ोल और फालसिया से किया था।1922 में तेजावत ने नीमड़ा गांव में भीलों का एक सम्मेलन बुलाया। जिसकी घेराबंदी ब्रिटिष सरार ने की व अंधाधुंध गेालियां चलाई। निमड़ाकाण्ड को दूसरा जिलयांवाला काण्ड कहते हैं।तेजावत भूमिगत हो गए। 1929 में मोतीलाल तेजावत ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से पुनः भीलों केलिए कार्य किये और वनवासी संघ नामक संस्था की सन् 1936 में स्थापना की।इस संघ के मुख्य सदस्य मोतीलाल पाण्ड्य (बांगड़ का गांधी), माणिक्यलाल वर्मा और मोतीलाल तेजावत थे।

3. मीणा आंदोलन (1930) ===> यह जयपुर रियासत में हुआ।इसका कारण 1924 में ब्रिटश सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया तथा 1930 में जयपुर राज्य में जरायम पेशा कानून बनाया जिसमें मीणाओं को अपराधी जाति घोषित कर दिया और इन्हें दैनिक रूप से निकटतम थाने में उपस्थिति दर्ज करवाना अनिवार्य कर दिया।मीणाओं ने इसका विरोध किया और संघर्षं के लिए 1933 मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन , मीणा जाति सुधार कमिटी का गठन किया और 1944 में मुनि मगर सागर की अध्यक्षता में नीमका थाना में एक सम्मेलन बुलाया और 1946 में स्त्रियों और बच्चों को इस कानून से मुक्त कर दिया।28 अक्टूबर, 1946 को बागावास में मीणाओं ने सम्मेलन बुलाया और चैकीदारी के काम से इस्तीफा दे दिया।आजादी के बाद 1952 में जरायम पेशा कानून पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया गया।

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♣♣ स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गठित संस्थाए/संघ/संगठन ♣♣

1. सभ्य सभा की स्थापना ===> इसकी स्थापना गुरू गोविन्द गिरी ने आदिवासी हितों की सुरक्षा के लिए की थी।

2. राजस्थान सेवा संघ (1919) ===> इस संस्था को 1920 में अजमेर स्थानांतरितकरदिया गया।राजस्थान सेवा संघ में प्रमुख भूमिका अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक, केसरीसिंह बारहठ एवं रामनारायण चैधरीने निभाई थी।

3. राजपुताना मध्य भारत सभा (1919) ===> इसकी स्थापना आमेर में जमनालाल बजाज ने की थी। इसमें मुख्य भूमिका अर्जुनलाल सेठी एवं विजयसिंह पथिक ने निभाई थी।

4. वीर भारत समाज (1910) ===> इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।

5. वीर भारत सभा (1910) ===> इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।

6. जैन वर्द्धमान विद्यालय (1907) ===> इसकी स्थापना अर्जुनलाल सेठी ने जयपुर में की थी।

7. वागड़ सेवा मंदिर एवं हरिजन सेवा समिति (1935) ===> इसकी स्थापना भोगीलाल पाण्ड्या ने की थी।

8. मारवाड़ सेवा संघ (1920) ===> इसकी स्थापना चांदमल सुराणा ने की थी।मारवाड़ सेवा संघ को सन् 1924 में जयनारायण व्यास ने पुनः जीवित किया और एक नई संस्था की स्थापना की जिसे ‘‘मारवाड़ हितकारणी सभा’’ के नाम से जाना गया।

9. मारवाड़ हितकारणी सभा ===> इसकी स्थापना 1929 में हुई।

10. अखिल भारतीय देषी राज्य लोक परिषद (1927) ===> इसकी स्थापना में मुख्य भूमिका जवाहरलाल नेहरू ने निभाई थी।इसका प्रथम अधिवेषन मुम्बई में

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