कुम्भलगढ दुर्ग
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मेवाड और मारवाड कि सीमा पर सादडी गाँव के समीप
स्थित कुम्भलगढ का सतत युद्ध और संघर्ष के काल मे विशेष
महत्व था।
कुम्भलगढ दुर्ग संकटकाल मे मेवाड का राजपरिवार का
आश्रय स्थल रहा है।
स्थित कुम्भलगढ का सतत युद्ध और संघर्ष के काल मे विशेष
महत्व था।
कुम्भलगढ दुर्ग संकटकाल मे मेवाड का राजपरिवार का
आश्रय स्थल रहा है।
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इस किले कि ऊचाई के बारे मे अबुल फजल ने लिखा है
कि यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ कि नीचे से उपर कि
ओर देखने पर सिर से पगडी गिर जाती है।
कि यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ कि नीचे से उपर कि
ओर देखने पर सिर से पगडी गिर जाती है।
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मेवाड के इतिहास वीर विनोद के अनुसार महाराणा कुम्भा ने
विँ. संवत 1448 ई मे कुम्भलगढ या कुम्भलमेरु कि नींव रखी।
उपलब्द साक्षयो के अनुसार दुर्ग निर्माण के लिए जिस स्थान को
चुना गया,वहां मौर्य शासक सम्प्रति[अशोक का दितीय पुत्र]
द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग भग्न रूप मे पहले से विघमान था।
सम्प्रति ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था।
विँ. संवत 1448 ई मे कुम्भलगढ या कुम्भलमेरु कि नींव रखी।
उपलब्द साक्षयो के अनुसार दुर्ग निर्माण के लिए जिस स्थान को
चुना गया,वहां मौर्य शासक सम्प्रति[अशोक का दितीय पुत्र]
द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग भग्न रूप मे पहले से विघमान था।
सम्प्रति ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था।
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1442 ई मे मांडु [मालवा] के सुल्तान महमुद खिलजी ने
कुम्भा से पराजय का प्रतिशोध लेने के लिए कुम्भलगढ पर
आक्रमण किया परन्तु असफल रहा।
उसके बाद गुजरात के सुल्तान कुतूबुददीन ने 1457 ईँ मे
एक विशाल सेना के साथ कुम्भलगढ दुर्ग पर आक्रमण
किया परन्तु वह भी असफल रहा।
कुम्भा से पराजय का प्रतिशोध लेने के लिए कुम्भलगढ पर
आक्रमण किया परन्तु असफल रहा।
उसके बाद गुजरात के सुल्तान कुतूबुददीन ने 1457 ईँ मे
एक विशाल सेना के साथ कुम्भलगढ दुर्ग पर आक्रमण
किया परन्तु वह भी असफल रहा।
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मेवाड के यशस्वी महाराणा कुम्भा कि उन्ही के द्वारा निर्मित
कुम्भलगढ दुर्ग मे उनके ज्येष्ट राजकुमार ऊदा [उदयकरण] ने
धोखे से पीछे से वार कर हत्या कर दी गई।
उदयकरण को उसके सामन्तो ने शिकार के बहाने कुम्भलगढ से
बाहर भेज दिया तथा रायमल महाराणा बना।
महाराणा रायमल के कुंवर पृथ्वीराज और संग्रामसिँह
[राणा सांगा] का बाल्यकाल कुम्भलगढ दुर्ग मे ही व्यतीत हुआ।
इनमे कुंवर पृथ्वीराज अपनी तेज धावक शक्ति के कारण
इतिहास मे "उङणा पृथ्वीराज" के नाम से प्रसिद्ध है।
यह कुंवर पृथ्वीराज अपने बहनोई सिरोहि के
राव जगमाल के षडयंत्र का शिकार हुआ।
कुम्भलगढ दुर्ग मे उनके ज्येष्ट राजकुमार ऊदा [उदयकरण] ने
धोखे से पीछे से वार कर हत्या कर दी गई।
उदयकरण को उसके सामन्तो ने शिकार के बहाने कुम्भलगढ से
बाहर भेज दिया तथा रायमल महाराणा बना।
महाराणा रायमल के कुंवर पृथ्वीराज और संग्रामसिँह
[राणा सांगा] का बाल्यकाल कुम्भलगढ दुर्ग मे ही व्यतीत हुआ।
इनमे कुंवर पृथ्वीराज अपनी तेज धावक शक्ति के कारण
इतिहास मे "उङणा पृथ्वीराज" के नाम से प्रसिद्ध है।
यह कुंवर पृथ्वीराज अपने बहनोई सिरोहि के
राव जगमाल के षडयंत्र का शिकार हुआ।
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राणा सांगा कि मृत्यु के अनन्तर मेवाड राजपरिवार को
आन्तरिक कलह के घटनाक्रम मे स्वामित्व पन्ना धाय ने अपने
पुत्र कि बलि देकर उदयसिँह को बनवीर के कोप से बचाया व
कुम्भलगढ मे उसका लालन पालन किया।
आगे चलकर इसी दुर्ग मे उदयसिह का
मेवाढ के महाराणा के रूप मे राज्याभिषेक हुआ।
आन्तरिक कलह के घटनाक्रम मे स्वामित्व पन्ना धाय ने अपने
पुत्र कि बलि देकर उदयसिँह को बनवीर के कोप से बचाया व
कुम्भलगढ मे उसका लालन पालन किया।
आगे चलकर इसी दुर्ग मे उदयसिह का
मेवाढ के महाराणा के रूप मे राज्याभिषेक हुआ।
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कुम्भलगढ दुर्ग मे वीरशिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था।
बाद मे गोगुन्दा मे अपने राजतिलक के पश्चात महाराणा प्रताप
कुम्भलगढ आ गए तथा वही से मेवाड का शासन करने लगे।
1576 ईँ मे कुँवर मानसिँह ने विशाल मुगल सेना के साथ प्रताप
पर चढाई कि तब महाराणा प्रताप कुम्भलगढ मे ही लडाई कि
तैयारी कर हल्दीघाटी कि और बढे।
हल्दीघाटी युद्ध मे अपनी पराजय के बाद महाराणा प्रताप ने
कुम्भलगढ पहुचकर अपनी खोई हुई सैन्य शक्ति
को पुन: संगठित किया...
बाद मे गोगुन्दा मे अपने राजतिलक के पश्चात महाराणा प्रताप
कुम्भलगढ आ गए तथा वही से मेवाड का शासन करने लगे।
1576 ईँ मे कुँवर मानसिँह ने विशाल मुगल सेना के साथ प्रताप
पर चढाई कि तब महाराणा प्रताप कुम्भलगढ मे ही लडाई कि
तैयारी कर हल्दीघाटी कि और बढे।
हल्दीघाटी युद्ध मे अपनी पराजय के बाद महाराणा प्रताप ने
कुम्भलगढ पहुचकर अपनी खोई हुई सैन्य शक्ति
को पुन: संगठित किया...
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