Friday 21 July 2023

भारत के प्रमुख व्यक्ति और उनके समाधि स्थलों की सूची: (Crematorium of Famous Personalities of India in Hindi)

 

भारत के प्रमुख व्यक्ति और समाधि स्थलों की सूची:

व्यक्ति का नामसमाधि स्थल का नाम
इंदिरा गांधी (भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री)शक्ति स्थल
के. आर. नारायणनउदय भूमि
गुलजारीलाल नन्दानारायण घाट
चौधरी चरण सिंहकिसान घाट
जगजीवन रामसमता स्थल
जवाहर लाल नेहरूशांति वन
ज्ञानी जैल सिंहएकता स्थल
डॉ॰ भीमराव आंबेडकरचैत्रा भूमि
डाँ. राजेन्द्र प्रसाद (भारत के पहले राष्ट्रपति)महाप्रयाण
महात्मा गांधीराजघाट
मोराजी देसाईअभय घाट
राजीव गांधीवीर भूमि
लाल बहादुर शास्त्रीविजय घाट
शंकर दयाल शर्माकर्म भूमि
अटल बिहारी वाजपेयीराष्ट्रीय स्मृति स्थल

Monday 11 May 2020

कैलाश_मंदिर एलोरा गुफा

कैलाश_मंदिर

इस मंदिर के बारे मे पश्चिम के वैज्ञानिक कहते हैं कि इसे किसी एलियन सभ्यता ने बनाया होगा ,आजका मनुष्य भी ऐसे मंदिर आज भी नहीं बना सकता

सन 1682 में उस मुग़ल शासक ने 1000 मजदूरों को इकट्ठा किया और इस मंदिर को तोड़ने का काम दिया,

मजदूरों ने 1 साल तक इसे तोड़ा,
1 साल लगातार तोड़ने के बाद वो सब इसकी कुछ मूर्तियाँ ही तोड़ सके, हार कर उस मुग़ल शासक ने उन्हें वापस बुला लिया,

वो शासक था औरंगजेब, जिसकी मूर्ख सेना ये समझ बैठी थी कि ये कोई ईंट और मिट्टी से बना साधारण मंदिर है।।
लेकिन उन्हें कहाँ पता था कि ये मंदिर हमारे पूर्वजों ने धरती की सबसे कठोर चट्टान को चीरकर बनाया है।

ये वही पत्थर है जो करोड़ों साल पहले धरती के गर्भ से लावे के रूप में निकला था और बाद में ठंडा होकर जमने से, इसने पत्थर का रूप लिया



कैलास मंदिर को U आकार में उपर से नीचे काटा गया है जिसे पीछे की तरफ से 50 मीटर गहरा खोदा गया है। पर आप सोचिये इतनी कठोर और मजबूत चट्टान को किस चीज़ से काटा गया होगा?।।
हथौड़े और छेनी से??

आपको मंदिर की दीवारों पर छेनी के निशान दिख जायेंगे पर वहाँ के आध्यात्मिक गुरुओं का कहना है कि ये छेनी के निशान बाद के हैं,।।
जब पूरा मंदिर बना दिया गया ये बस किनारों को Smooth करने के लिए उपयोग की गयीं थी। इतनी कठोर बेसाल्ट चट्टान को खोद कर उसमे से इस मंदिर को बना देना कहाँ तक संभव है???

कुछ खोजकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकार की जटिल संरचना का आधुनिक तकनीक की मदद से निर्माण करना आज भी असंभव है।

क्या वो लोग जिन्होंने इस मंदिर को बनाया आज से भी ज्यादा आधुनिक थे?।।
ये एक जायज सवाल है

यहाँ कुछ वैज्ञानिक आँकड़ों पर बात कर लेते हैं,।।
पुरातात्विदों का कहना है कि इस मंदिर को बनाने के लिए 400,000 टन पत्थर को काट कर हटाया गया होगा और ऐसा करने में उन्हें 18 साल का समय लगा होगा ।

तो आइये एक सरल गणित की कैलकुलेशन करते हैं

माना की इस काम को करने के लिए वहाँ काम कर रहे लोग 12 घंटे प्रतिदिन एक मशीन की तरह कार्य कर रहे होंगे जिसमें उन्हें कोई ब्रेक या रेस्ट नहीं मिलता होगा वो पूर्ण रूप से मशीन बन गये होंगे ।

तो अगर 400,000 टन पत्थर को 18 साल में हटाना है तो उन्हें हर साल 22,222 टन पत्थर हटाना होगा , जिसका मतलब हुआ 60 टन हर दिन और 5 टन हर घंटे ।

ये समय तो हुआ मात्र पत्थर को काट कर अलग करने का।।।
उस समय का क्या जो इस मंदिर की डिजाईन, नक्काशी और इसमें बनाई गयीं सैंकड़ों मूर्तियों में लगा होगा।

एक प्रश्न जो और है वो ये है कि जो पत्थर काट कर बाहर निकाला गया वो कहाँ गया?? उसका इस मंदिर के आसपास कोई ढेर नहीं मिलता।।
ना ही उस पत्थर का इस्तेमाल किसी दूसरे मंदिर को बनाने या अन्य किसी संरचना में किया गया,।।
आखिर वो गया तो गया कहाँ??

क्या आप को अभी भी लगता है कि ये कारनामा आज से हजारों वर्ष पहले मात्र छेनी और हथौड़े की मदद से अंजाम दिया गया होगा।

राष्ट्रकूट राजाओं ने वास्तुकला को चरम पर लाकर रख दिया, जैसा कि बताया जाता है इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम(756 - 773) ने करवाया था।

यह मंदिर उस भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है जिसका मुकाबला पूरी दुनिया में आज भी कोई नहीं कर सकता।

ये उस मुग़ल शासक की बर्बरता और इस मंदिर के विरले कारीगरों की कुशलता दोनों को साथ में लिए आज भी खड़ा है और हमारे पूर्वजों के कौशल और पुरुषार्थ के सबूत देते हुए आधुनिक मानव को उसकी औकात दिखाते हुए कह रहा है कि दम है तो मुझे फिर से बनाकर दिखाओ।

ये औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में भगवान शिव का मंदिर है।।।
जो एक पहाड़ को काटकर बनाया गया है और इसको बनाने में 200 साल लगे हैं।

अच्छे से अच्छा धरोहर हमारे देश मे हैं कभी इनपर ध्यान दीजिए।

औरंगाबाद का कैलाश शिव मंदिर:

हम बात कर रहे हैं औरंगाबाद में स्थित भगवान शिव के इस मंदिर की।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान शिव के इस मंदिर के रहस्य के बारें में आज भी मात्र 10 से 15 प्रतिशत हिन्दू ही जानते हैं।
लेकिन औरंगाबाद स्थित कैलाश मंदिर के बारें में बोला जाता है कि इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि इसमें ईंट और पत्थरों का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
एक पहाड़ी को इस तरह से काटा गया है कि आज एक पहाड़ी ही मंदिर है।
इस मंदिर को ऊपर से नीचे बनाया गया है।
जबकि आज इमारत हम नीचे से ऊपर बनाते हैं।

आज तक विज्ञान भी कैलाश मंदिर की इस सच्चाई का पता नहीं लगा पाया है कि किस तरह से और किस तरह की मशीनों से इस शिव मंदिर का निर्माण किया गया होगा।

भारत तो दूर की बात है अमेरिका, रूस के वैज्ञानिक भी ऐसा बोलते हैं कि इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे मंदिर स्वर्ग से बना-बनाया ही उतारा गया हैं।

वेदों में बौमास्त्र नामक एक अस्त्र लिखा गया गया है जो शायद इस तरह के निर्माण को कर सकता था।

इस मंदिर के निर्माण में 40 हजार टन भारी पत्थर का निर्माण किया गया है तब जाकर 90 फीट ऊँचा मंदिर बना

Wednesday 1 January 2020

पूजा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

*_पूजा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी*

®★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

®★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

®★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

®★ मन्दिर में किसी व्यक्ति के चरण नहीं छूने (गुरु को छोड़कर ) चाहिए।

®★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे मानसिक जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

®★ जप करते समय माला को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

®★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

®★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

®★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

®★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

®★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,

®★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

®★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

®★  देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

®★  किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

®★  एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

®★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

®★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

®★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंकुम नहीं चढ़ती।

®★ शिवलिंग पर हल्दी नही चढ़ावे।

®★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

®★ अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावे।

®★ नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

®★ विष्णु भगवान को चावल गणेश जी  को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण  को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

®★ पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

®★ किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।

®★पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।

®★ सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

®★ गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को ही चढ़ती हैं।

®★ पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

®★ दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

®★ सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

®★ पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

®★ पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

® घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।

Saturday 21 December 2019

rajasthan state stroke, राजस्थान के प्रमुख आंदोलन

राजस्थान के प्रमुख आंदोलन

♣♣ राजस्थान के किसान आंदोलन ♣♣

1. बजौलिया किसान आंदोलन (1897 -1941) ===> बिजौलिया ठिकाने का संस्थापक अषोक परमार था।खानवा के युद्ध में सांगा की सहायता करने के कारण, सांगा ने यह ठिकाना अषोक परमार को दिया था।बिजौलिया का क्षेत्र उपरमाल के नाम से जाना जाता हैं। इस ठिकाने में धाकड़ किसान कृषि कार्य करते थे।यह आंदोलन लागबाग (83 प्रकार की थी), बेगार, लाटा, कुंता व चंवरी कर, तलवार बंधाई कर (भू-राजस्व निर्धारणकी पद्धतियां) के विरोध के पिरणामस्वरूप हुई थी।बिजौलिया किसान आंदोलन की शुरूआत साधुसीतारामदास, नानकजी पटेल व ठाकरी पटेल के नेतृत्व में हुई थी।जिसकी बागड़ोर 1916 में विजयसिंह पथिक ने सम्भाली।1917 ई. में विजयसिंह पथिक ने ऊपरमाल पंचबोर्ड़ की स्थापना की।1927 में विजयसिंह पथिक इस आंदोलन से अलग हो गए।विजयसिंह पथिक के बाद माणिक्यलाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय तथा जमनालाल बजाज ने इस आंदोलन की बागड़ोर संभाली ।माणिक्यलाल वर्मां व मेवाड़ रियासत के प्रधानमंत्री टी.राघवाचार्य के बीच समझौता हुआ और किसानों की अधिकांश माँग मान ली गयी।विजयसिंह पथिक को किसान आंदोलन का जनक कहा जाता हैं।

2. बेंगु किसान आंदोलन (चित्तौड़गढ़) (1921) ===> इसकी शुरूआत लाग बाग, बेगार प्रथा के विरोध के पिरणामस्वरूप कारण सन् 1921 ई. हुई थी।आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चैधरी ने की बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी। इस समय बेंगु के ठाकुर अनुपसिंह थे।1923 में अनुपसिंह और राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारयण चैधरी के मध्य एक समझौता हुआ जिसे वोल्सेविक समझौते की संज्ञा दी गई। यह संज्ञा किसान आंदोलन के प्रस्तावों के लिए गठित ट्रेन्च आयोग ने दी थी।13 जुलाई,1923 को गोविन्दपुरा गांव में किसानों का एक सम्मेलन हुआ, सेना के द्वारा किसानों पर गोलिया चलाई गयी। जिसमें रूपाजी और कृपाजी नामक दो किसान शहीद हुए। अन्त में बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया। यह आन्दोलन विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में समाप्त हुआ था।

3. अलवर किसान आंदोलन ===> अलवर में दो आंदोलन हुए थे :---

i) सुअरपालन विरोधी आंदोलन (1921) ===> अलवर में बाड़ों में सुअर पालन किया जाता था, जब कभी इन सुअर को खुला छोड़ा जाता था, तब ये फसल नष्ट कर देते थे। जिसका किसानों ने विरोध किया, जबकि सरकार ने सुअरों को मारने पर पाबंदी लगा रखी थी। लेकिन अंत में सरकार के द्वारा सुअरों को मारने की अनुमति दे दी एवं आंदोलन शांत हो गया।

ii) नीमूचणा किसान आंदोलन (1923-24) ===> अलवर के महाराजा जयसिंह द्वारा लगान की दर बढ़ाने पर 14 मई, 1925 को नीमूचणा गांव में 800 किसानों ने एक सभा आयोजित कीजिस पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें सैकड़ों किसान मारे गए।गांधीजी ने इस आंदोलन को जलियांवालाबाग कांड से भी वीभत्स की संज्ञा दी और इसे दोहरे डायरिजम की संज्ञा दी।

4. बूंदी किसान आंदोलन (1926) ===> इस आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं। आंदोलन का मुख्य कारण अत्यधिक लगान, लाग बाग और बेगार थी।आंदोलन की शुरूआत नैनूराम शर्मा ने की। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया, पुलिस ने किसानों पर गोलिया चलाई, जिसमें झण्डा गीत गाते हुए नानकजी भील शहीद हो गए।कुछ समय बाद माणिकलाल वर्मा ने इसका नेतृत्व किया। यह आंदोलन 17 वर्षं तक चला एवं 1943 में समाप्त हो गया।

5. दूधवा-खारा किसान आंदोलन (1946-47) ===> बीकानेर रियासत के चुरू में हुआ। आंदोलन का कारण जमींदारों का अत्याचार था। इस समय बीकानेर के शासक शार्दुलसिंजी (गंगासिंहजी के पुत्र) थे। इस आंदोलन का नेतृत्व रघुवरदयाल गोयल, वैद्य मघाराम, हनुमानसिंह आर्य के द्वारा किया गया।

6. मातृकुण्डिया किसान आंदोलन (चित्तौड़गढ़) ===> 22 जून, 1880 में हुआ। यह एक जाट किसान आंदोलन था। इसका मुख्य कारण नई भू-राजस्व व्यवस्था थी। इस समय मेवाड़ के शासक महाराणा फतेहसिंह थे।

7. मेव किसान आंदोलन (1931) ===> यह अलवर व भरतपुर (मेवात) में हुआ। अलवर, भरतपुर के मेव बाहुल्य क्षेत्र को मेवात कहते हैं। यह लगान विरोधी आंदोलन था। आंदोलन का नेतृत्व मोहम्मद अली के द्वारा किया गया।

8. किषोरीदेवी (25 अप्रैल, 1934) ===> सीकर के कटराथल नामक स्थान पर सरदार हरलालसिंह की पत्नि किषोरदेवी के नेतृत्व में जाट महिलाओं का एक सम्मेलन बुलाया गया। जिसमें लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया।श्रीमती रमादेवी, श्रीमती दुर्गादेवी, श्रीमती उत्तमादेवी ने इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। किषोरीदेवी के प्रयासों से शेखवाटी क्षेत्र में राजनैतिक चेतना जागृत हुई।

9. जयसिंहपुरा किसान हत्याकाण्ड (1934) ===> यह 21 जून, 1934 को डूंडलोद के ठाकुर के भाई ने खेत जोत रहे किसानों पर गोलिया चलाई, जिसमें अनेक किसान शहीद हुए। ठाकुर के भाई ईश्वरसिंह पर मुकदमा चलाया गया।

10. शेखावटी किसान आंदोलन (1925) ===> यह आंदोलन पलथाना, कटराथल, गोधरा, कुन्दनगांव आदि गांवों में फैला हुआ था।खुड़ी गांव और कुन्दन गांव में पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही में अनेक किसान मारे गये।शेखावटी किसान आंदोलन में जयपुर प्रजामण्डल का योगदान था।1946 में हीरालाल शास्त्री के माध्यम से आंदोलन समाप्त हुआ।

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♣♣ राजस्थान के जनजातीय आंदोलन ♣♣

1. भगत आंदोलन/गोविन्दगिरी आंदोलन (1883) ===> भील, आदिवासी संन्यासियों को भगत कहा जाता था।यह आंदोलन आदिवासी भील बाहुल्य डुंगरपुर और बांसवाड़ा में हुआ था।गोविन्दगिरी के द्वारा भीलों में व्याप्त बुराईयों, कुप्रथाओं को दूर करने के लिए एवं भीलों में राजनैतिक चेतना जागृत करने के लिए 1883 में संप (भाईचारा या सम्पत) सभा की स्थापना की एवं धूणी की स्थापना की जहां गोविन्दगिरी ने भीलों को उपदेष दियें।गोविन्दगिरी दयानन्द सरस्वती की विचारधारा से प्रेरित थे। इन्होने बांसवाड़ा की मानगढ़ की पहाड़ी को अपनी कर्मभूमि बनाया।7 दिसम्बर, 1908 को हजारों की संख्या में भील इस पहाड़ी पर इकटठे हुए। पुलिस के द्वारा इन पर गोलियां चलाई गई, जिसमें लगभग 1500 भील मारे गए।प्रतिवर्ष इस स्थान पर अष्विन शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता हैं।ब्रिटिश सरकार और रियासत के द्वारा इस आंदोलन को दबा दिया गया।

2. एकी आंदोलन/भोमट भील आंदोलन (1921-23) ===> इस आंदोलन का सुत्रपात मोतीलाल तेजावत ने किया था। इन्हे आदिवासियों का मसीहा कहा जाता हैं।मोतीलाल तेजावत का जन्म उदयपुर के कोलियार गांव में एक ओसवाल परिवार में हुआ था। इस आंदोलन का प्रमुख कारण भीलों में व्याप्त असंतोष था। असंतोष के कारण निम्न थें===>

i) भीलों में व्याप्त सामाजिक बुराईयां व उनकी प्रथाओं पर ब्रिटिश सरकार ने रोक लगा दी थी।

ii) तम्बाकू, अफीम और नमक पर कर लगाए गए। यदि भील कर नहीं चुकाता तो उसे खेती नहीं करने दी जाती थी।

iii) भीलों से लाभ और बेगार लेने के लिए क्रुरतापूर्वक व्यवहार किया जाता था।

► मोतीलाल तेजावत ने सभी भीलों को एकत्रित कर इस आंदोलन का श्रीगणेष 1921 में झाड़ोल और फालसिया से किया था।1922 में तेजावत ने नीमड़ा गांव में भीलों का एक सम्मेलन बुलाया। जिसकी घेराबंदी ब्रिटिष सरार ने की व अंधाधुंध गेालियां चलाई। निमड़ाकाण्ड को दूसरा जिलयांवाला काण्ड कहते हैं।तेजावत भूमिगत हो गए। 1929 में मोतीलाल तेजावत ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से पुनः भीलों केलिए कार्य किये और वनवासी संघ नामक संस्था की सन् 1936 में स्थापना की।इस संघ के मुख्य सदस्य मोतीलाल पाण्ड्य (बांगड़ का गांधी), माणिक्यलाल वर्मा और मोतीलाल तेजावत थे।

3. मीणा आंदोलन (1930) ===> यह जयपुर रियासत में हुआ।इसका कारण 1924 में ब्रिटश सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया तथा 1930 में जयपुर राज्य में जरायम पेशा कानून बनाया जिसमें मीणाओं को अपराधी जाति घोषित कर दिया और इन्हें दैनिक रूप से निकटतम थाने में उपस्थिति दर्ज करवाना अनिवार्य कर दिया।मीणाओं ने इसका विरोध किया और संघर्षं के लिए 1933 मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन , मीणा जाति सुधार कमिटी का गठन किया और 1944 में मुनि मगर सागर की अध्यक्षता में नीमका थाना में एक सम्मेलन बुलाया और 1946 में स्त्रियों और बच्चों को इस कानून से मुक्त कर दिया।28 अक्टूबर, 1946 को बागावास में मीणाओं ने सम्मेलन बुलाया और चैकीदारी के काम से इस्तीफा दे दिया।आजादी के बाद 1952 में जरायम पेशा कानून पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया गया।

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♣♣ स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गठित संस्थाए/संघ/संगठन ♣♣

1. सभ्य सभा की स्थापना ===> इसकी स्थापना गुरू गोविन्द गिरी ने आदिवासी हितों की सुरक्षा के लिए की थी।

2. राजस्थान सेवा संघ (1919) ===> इस संस्था को 1920 में अजमेर स्थानांतरितकरदिया गया।राजस्थान सेवा संघ में प्रमुख भूमिका अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक, केसरीसिंह बारहठ एवं रामनारायण चैधरीने निभाई थी।

3. राजपुताना मध्य भारत सभा (1919) ===> इसकी स्थापना आमेर में जमनालाल बजाज ने की थी। इसमें मुख्य भूमिका अर्जुनलाल सेठी एवं विजयसिंह पथिक ने निभाई थी।

4. वीर भारत समाज (1910) ===> इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।

5. वीर भारत सभा (1910) ===> इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।

6. जैन वर्द्धमान विद्यालय (1907) ===> इसकी स्थापना अर्जुनलाल सेठी ने जयपुर में की थी।

7. वागड़ सेवा मंदिर एवं हरिजन सेवा समिति (1935) ===> इसकी स्थापना भोगीलाल पाण्ड्या ने की थी।

8. मारवाड़ सेवा संघ (1920) ===> इसकी स्थापना चांदमल सुराणा ने की थी।मारवाड़ सेवा संघ को सन् 1924 में जयनारायण व्यास ने पुनः जीवित किया और एक नई संस्था की स्थापना की जिसे ‘‘मारवाड़ हितकारणी सभा’’ के नाम से जाना गया।

9. मारवाड़ हितकारणी सभा ===> इसकी स्थापना 1929 में हुई।

10. अखिल भारतीय देषी राज्य लोक परिषद (1927) ===> इसकी स्थापना में मुख्य भूमिका जवाहरलाल नेहरू ने निभाई थी।इसका प्रथम अधिवेषन मुम्बई में

Monday 2 December 2019

हास्य व्यंग्य

*तोंद*

पेट के तोंद मे बदलने का अंदेशा सबसे पहले तोंद के मालिक को ही होता है पर असमंजस बना रहता है पहले कुछ महिनो तक ! वो उसे *पेट* ही कहता रहता है ! उसके अस्तित्व से ही इनकार करता है !
हल्के से लेता है वो अपनी तोंद को ! समझाता है वो खुद को कि ये लगातार हो रहे शादी ब्याहो मे उडाये गये तर माल का नतीजा भर है ! उसे लगता है पिछले *कुछ* दिनो से पूरी ना हो सकी नींद की वजह से हुआ है ऐसा और जल्दी ही वह अपने पुराने शेप मे लौट आयेगा !

नयी नयी तोंद के मालिक को लगता है कि ये *मौसमी* वायरल टाईप की ,भरी जवानी मे हुये मुँहासो जैसी ही कोई चीज है ! जिसे बिना इलाज के एकाध हफ्ते मे *खुदबखुद* ठीक हो ही जाना है !

पर ऐसा होता नही ! हफ्ते महिनो मे बदलते है वो वो *नामुराद* चीज उसके सीने से नीचे और कमर के ऊपर बेशरमी से अपना आयतन बढाती रहती है !
बीबी बच्चे टोकने लगते हैं ऐसे में ! वो बीबी के माथे मढता है अपनी तोंद ! उसके बनाये खाने को ,उसके जिद करके खरीदे गये टीवी को ,रोज रोज आते त्यौहारो को ,अपने बाप ,दादाओ की तोदों सी आनुवांशिकता को इसका जिम्मेदार बताता है !

तोंद का जिक्र होते ही मुँह बनाता है ! लडने भिडने पर ऊतारू होता है और घर का माहौल खराब कर देता है ! चाहता ही नही कोई यह नाजुक मुद्दा छेडे ! बीबी बच्चे जल्दी ही समझदार हो जाते है ऐसे मे और तोंद अनदेखी की जाने लगती है !

पर तोंद को पसंद आता नही अनदेखा किया जाना ! वह शर्ट के *बटन* तोड कर प्रगट हो जाना चाहती है ! हो ही जाती है ! मजबूर कर देती है बंदे को कि शर्ट इन करना छोड दे ! बहुत बार शर्ट हाथ खडे कर देती है तब कुरता इज्जत बचाने की जिम्मेदारी उठाने आगे आता है !

बीबी बच्चे मन मार कर भले ही तोंद की तरफ से आँखे फेर लें पर *कमीने* दोस्त यार मानते नही ! मजे लिये जाते है तोंद के मालिक के ! तोंद के फायदे समझाने के साथ साथ उसे तोंद के निकल आने के ऐसे ऐसे कारण बताते है जो केवल खून जलाते हैं ! तोंद से पीछा छुडाने के ऐसे ऐसे जानलेवा तरीके भी बताना भी दोस्त अपना फर्ज समझते है जिन्हे अमल मे लाने के चक्कर मे बंदे की जान जाते जाते बचती है !

बहुत बार तानो से प्रेरित भी होता है वो ! लडता है वो अपनी तोंद से ! *कसम* उठाता है कि वो वापस अपनी तेईस साल की उम्र वाला पेट हासिल करके ही दम लेगा ! अपने लिये *कठिन* टाईम टेबल तय कर लेता है वो ! नये मँहगे *स्पोर्ट्स* शू खरीदता है ! सुबह जल्दी उठकर घूमने जाना शुरू होता है ! क्या खाना है ! कितनी पीना है जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओ को भी इस टाईम टेबल मे जगह दी जाती है ! नजदीकी जिम की साल भर की फीस *एडवान्स* मे भर दी जाती है ! कपालभाति और अनुलोम विलोम भी जिंदगी मे चले आते हैं ! आयुर्वेद के मरियल से डॉक्टरो की सलाहो पर अमल भी होता है ! यह सिलसिला चलता भी है कुछ दिन !

फिर कभी अचानक लेट नाईट पार्टी हो जाती है ! मौसम अचानक खराब हो जाता है ! सुबह सुबह बॉस को लेने एयरपोर्ट  भी जाना पडता है बंदे को ! कभी कभी पीठ की कोई नस खिंच जाती है ! नतीजा वही निकलता है इसका ! स्पोट्स शू पर *धूल* जमने लगती है और तोंद चीन की तरह चुपचाप अपना *इलाका* बढाने मे लगी रहती है !
तोंद और आदमी की लडाई मे तोंद हमेशा बाजीराव पेशवा साबित होती है ! आपको हथियार डालने ही पडते है इस अजेय योद्धा के सामने ! घुटने टेकता है वो अपनी तोंद के सामने और संधि करने पर विवश होता है !

ऐसे में अब क्या करे आदमी ! वो अनचाहे गर्भवती हो गयी महिला की तरह बर्ताव करता है ! ढीले कपडे पहनना शुरू करता है अब वो ! कुछ समय पहले ही खरीदी गई पेंट के बगावती हुको को नजरअंदाज कर अगली साईज का पेंट खरीदता है ! फोटो शूट करते वक्त *साँस* बाहर छोडता है और तब तक साँस नही लेता जब तक फोटोग्राफर क्लिक ना कर दे ! अपनी फोटो तब तक एडिट करता है जब तक उसमे से तोंद *अन्तर्ध्यान* ना हो जाये !

तोंद से पराजित आदमी सोफे मे धँसे रहना स्वीकार कर लेता है ! अब टीवी पर बाबा रामदेव का पेट फुलाना ,पिचकाना प्रभावित नही करता उसे ! वो एक लार्ज पीत्जा ऑर्डर करता है और चैनल बदल देता है ! मान लेता है कि वो अब अपने घुटने कभी नही देख पायेगा !

स्मार्ट लोगो की संगत से बचता है अब वो ! अपने जैसे तोंद के मालिक पंसद आने लगते हैं उसे ! उसके तर्क अपनी तोंद को सपोर्ट करते हैं अब ! मामूली बात है ये यार ! क्या फर्क पडता है ! किसकी नही होती तोंद ! खाये पिये लोगो की निशानी है ये भाई ! एक उम्र के बाद तो सबकी निकल आती है ये ! हमारी भी है तो है !

तोंद का निकलना ,निकले रहना जन्म मरण सा ही विधि हाथ है ! यदि ये आपका नक्शा बिगाड कर पाकिस्तान की तरह पैदा हो ही चुकी है तो मान लीजिये कि वह है !  इससे *लडना* समय और धन की *बरबादी* ही है और कुछ नही !

जीना सीखिये अपनी तोंद के साथ इसी मे सार है !

साभार- अज्ञात

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